विज्ञान के इंसानो पर किये गए Unethical Experiment | Unethical Science Experiments | HindiPack

 जूनून एक एसी भावना है जो इन्सान को किसी भी सफलता तक पहुँचा सकता है पर अगर वही जूनून अगर हद से आगे बढ़ जाये तो इन्सान को हैवान भी बना देता है 

इतिहास में कुछ एसे हैवान हुए है जिन्होंने अपने जूनून के कारण मानवों पर जानवरों की तरह प्रयोग किया 

जी हाँ दोस्तों आज के विडियो में हम बताने वाले है कुछ एसे ही प्रयोगों के बारें में जिन्होंने मानवता को शर्मसार कर दिया| 

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भाग नंबर एक – 

नाजी मेडिकल एक्सपेरिमेंट्स 

यह दुनिया का सबसे डरावना मेडिकल एक्सपेरिमेंट था| इसे डॉ. जोसेफ मेंगेल ने किया था| इसमें वे ट्रेन से कैंप में आने वाले लोगों पर एक्सपेरिमेंट करते थे| 

डॉ. जोसेफ मेंगेल ने कैदियों के ऊपर संक्रामक बीमारियों और रसायनिक हथियारों के टेस्ट किए| 

इसके लिए वे कम तापमान और कब दबाव वाले चेंबर में डालकर कैदियों की मृत्यु होने तक उन पर प्रयोग करते रहते थे| 

इसके बाद डॉ. मेंगेल मरने वाले कई मरीजों की आंखें निकालकर अपने पास जमा कर लेते थे| ताकि बाद में प्रयोग किया जा सके | 



उनके एक्सपेरिमेंट की क्रूरता का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल यह देखने के लिए कि एक बच्चा कितनी देर भूखा रह सकता है उन्होंने उस बच्चे की माँ के वक्षस्थलों को तारों से बांध दिया| 

नंबर दो– 

जापान का यूनिट 731

 यूनिट 731, हो सकता है आप इस नाम को पहली बार सुन रहे हो, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूनिट 731 का खौफ लोगो के दिलों में बसा हुआ था। 

यूनिट 731 जापानी सेना द्वारा बनाई गई एक ऐसी प्रयोगशाला थी, जहाँ जिंदा इंसानों पर ऐसे प्रयोग किए जाते थे, जिसके बारे में जानकर लोगों की रूह तक कांप उठती थी। 

जापानी सेना यहां जिंदा इंसानों के शरीर में खतरनाक वायरस और केमिकल्स डालकर उन पर प्रयोग करते थे। अधिकतर लोग प्रयोग के बीच में ही मर जाते थे पर जो जिंदा बच जाते थे, उनको बिना मारे चीर-फाड़ की जाती थी ताकि यह मालूम चल सके की वो जिन्दा कैसे बच गया। इस चीर-फाड के बाद कभी कोई जिन्दा नहीं बच पाया 

इस यूनिट के एक खौफनाक प्रयोग को देखिये 

फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग नामक इस प्रयोग में इंसान के हाथ-पैर को बिलकुल ठंडे पानी में डुबा दिया जाता था| इसके बाद जमे हुए हाथ-पैरों को गर्म पानी में पिघलाया जाता था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि अलग-अलग तापमान का इंसानी शरीर पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है। चीन में यूनिट 731 उस समय प्रयोग करने वाला इकलौता लैब नहीं था बल्कि चीन में इसकी और भी कई शाखाएं थीं, जिनमें लिंकोउ (ब्रांच 162), मु़डनजियांग (ब्रांच 643), सुनवु (ब्रांच 673) और हैलर (ब्रांच 543) शामिल थे। 

दूसरे विश्व युद्ध के बाद इन प्रयोगशालाओ को बंद कर दिया गया| 

इन प्रयोगशालाओ के बारें में आपकी क्या राय है हमें कमेन्ट करके जरुर बताएं आपके कमेन्ट का हमें बेसब्री से इंतजार रहेगा | 

नंबर तीन– 

द मॉन्स्टर स्टडी 

1939 में यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा ने हकलाना का कारण बेचैनी है को सिद्ध करने के लिए छोटे छोटे बच्चों को निशाना बनाया| 

उन्होंने अनाथ बच्चों को यह कहना शुरु किया कि वो कुछ दिन बाद हकलाना शुरु कर देंगे और बार बार उन बच्चों को हकलाने से संबंधित लक्षणों के बारे में बताते रहे| 

परन्तु यह प्रयोग पूरी तरह असफल हो गया क्योंकि किसी भी बच्चे ने हकलाना शुरु नहीं किया लेकिन वो अनाथ छोटे बच्चे अकेलेपन और बैचेनी का शिकार हो गये| 

इस प्रयोग को सबसे सामने लाया - न्यूयॉर्क टाइम्स 

सन 2003 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक आर्टिकल प्रकाशित किया जिसका टाईटल था -  द मॉन्स्टर स्टडी 

न्यूयॉर्क टाइम्स में आर्टिकल छपने के चार साल बाद यानि 2007 में इस प्रयोग में बचे तीन बच्चों ने आयोवा प्रशासन और यूनिवर्सिटी पर केस कर दिया 

नंबर चार – 

आत्मा का वजन 

प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि इंसान के सभी भले और बुरे कर्मों का हिसाब उसके दिल पर लिखा जाता है. 

अगर इंसान ने सादा और निष्कपट जीवन बिताया है तो उसकी आत्मा का वज़न पंख की तरह कम होगा और उसे स्वर्ग में जगह मिल जाएगी 

1907 में 'जर्नल ऑफ़ द अमरीकन सोसाइटी फ़ॉर साइकिक रीसर्च' में छपे एक शोध के मुताबिक 'हाइपोथेसिस ऑन द सबस्टेन्स ऑफ़ द सोल अलॉन्ग विद एक्सपेरिमेन्टल एविडेन्स फ़ॉर द एग्ज़िस्टेंस ऑफ़ सैड सब्जेक्ट' नामक शोध में इंसान की आत्मा का वजन मापने की कोशिश की गयी| 

इस प्रयोग को किया था -डॉक्टर डंकन मैकडॉगल ने 

1866 में जन्मे डॉक्टर डंकन ने एक तराजू जिसमे बड़ी चीज़ों का सटीक माप आसानी से लिया जा सकता था को एक बेहद हल्के वज़न वाले फ्रेम पर फिट किया 

जो लोग गंभीर रूप से बीमार होते थे यानि जिनके जल्द मरने की अधिक सम्भावना होती थी, उन्हें इस तराजू पर लिटाया जाता था 

छह साल तक चले इस प्रयोग में कुल 6 मामलों पर ही शोध किया जा सका जिसमें से भी दो सब्जेक्ट के आंकड़े शोध में शामिल नहीं थे 

ऐसे में शोध का नतीजा केवल चार मरीज़ों यानी चार मामलों पर आधारित था जिनमें से तीन सब्जेक्ट के मरने के बाद वजन कम नहीं होने से ये प्रयोग पूरी तरह असफल हो गया| 

अब आप हमें बताइए क्या आत्माए होती है आप अपना जवाव नीचे कमेन्ट बॉक्स में दे सकते है आपके कमेन्ट का हमें बेसब्री से इंतजार रहेगा| 

नंबर पांच– 

प्रोजेक्ट एमके अल्ट्रा 

सन 1950 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने दिमाग को कंट्रोल करने में महारत हासिल करने का प्रयास किया| इस प्रयोग में प्रतिभागियों को एलएसडी जैसे ड्रग्स दिए जाते थे| 

प्रयोग सफल हुआ या नहीं यह जानने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए प्रतिभागियों का शारीरिक यातनाओं के साथ यौन शोषण भी करती थी| 

नंबर छ– टस्केगी सिफलिस प्रयोग 

1932 में अमेरिका के अल्बामा में इस प्रयोग को शुरू किया गया 

जिसमें सिफलिस नामक बीमारी से ग्रसित मरीजों को दवा नहीं दी जाती थी 

यूएस पब्लिक हेल्थ सर्विसेज केवल यह जानना चाहता था कि अगर सिफलिस का इलाज न किया जाए तो क्या होगा नतीजन सभी मरीज बीमारी के चलते मारे गए| 

नंबर सात –  

एवर्जन प्रोजेक्ट 1971 में शुरू हुए इस प्रयोग को दक्षिण अफ्रीका में किया गया 

इस प्रयोग में समलैंगिक (होमोसेक्सुअल) सैनिको का इलेक्ट्रिक शॉक और केमिकल केस्ट्रेशन (नसबंदी) से उपचार किया जाता था| 

उस समय मेडिकल जगत यह मानता था कि समलैंगिकता एक दिमागी बीमारी है जिसे इलेक्ट्रिक शॉक से सही किया जा सकता है| 

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धन्यवाद ||

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