दुनिया में ऐसी कई चीज़े है जिन पर चाह कर भी विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। और इन्ही रहस्यों के ऊपर कई फिल्म भी बनी है। लेकिन फिल्मों और असल जिंदगी में बहुत अंतर होता है। असल जिंदगी की बात करें तो दुनिया में कुछ ऐसे रहस्य भी है जिनके बारे में वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा सके। इन्हीं रहस्यों में से एक बरमूडा ट्रायंगल भी है। जिसकी गुत्थी आज तक नही सुलझी। बरमूडा ट्राएंगल का तो नाम सुनकर ही लोग डर जाते हैं।
बरमूडा ट्रायंगल को लेकर ये दावे भी किए गए है, की यहां हजारों की तादाद में जहाज डूब गए और यहां पर दिशा दिखाने वाले कंपास भी काम नहीं करता।
और तो और यहां हवाई जहाज भी उड़ नही सकता। अगर हवाई जहाज बरमूडा ट्रायंगल के ऊपर से गुजरता है तो एक दम से गायब हो जाता है। अब वो हवाई जहाज कहा गया, कैसे गया किसी को नही पता।
बरमूडा ट्रायंगल बेहद हिंसक और अप्रत्याशित तूफानों के लिए जाना जाता है, जो तेजी से बनते और अपने आस पास की चीज़ों को तहस नहस कर देते हैं। ज़ाहिर सी बात है की ये सब सुन के आप के मन में भी बरमूडा ट्राएंगल की खौफनाक तस्वीरें सामने आ रही होंगी।
आइए पहले जान लेते है की आखिर ये बरमूडा ट्रायंगल कहां स्थित है? दरअसल बरमूडा ट्रायंगल अटलांटिक महासागर का एक पौराणिक खंड है जो मोटे तौर पर मियामी, बरमूडा और प्यूर्टो रिको से घिरा है।इन तीनों जगहों को सीधी लाइन से आपस में मिला दिया जाए तो एक ट्राएंगल बनता है। इसी ट्रायंगल को बरमूडा ट्राएंगल कहा जाता हैं। जहाँ दर्जनों जहाज और हवाई जहाज गायब हो गए हैं।
इनमें से कुछ दुर्घटनाओं में जहाज और हवाई जहाज अस्पष्ट परिस्थितियां में गायब हो गए। जिनमें से एक में नौसेना के बमवर्षकों के एक स्क्वाड्रन के यू.एस. पायलट क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरी थी और उसके बाद वो विमान कभी नहीं मिला। इसी तरह अन्य नावें और विमान क्षेत्र से बिना संकट संदेश दिए एक अच्छे मौसम में गायब हुई थी। जिस वजह से ये बरमूडा ट्राएंगल और भी ज्यादा खौफनाक बन गया।
वास्तव में बरमूडा ट्राइंगल धीरे-धीरे ढलान वाले महाद्वीपीय शेल्फ से एक अत्यंत गहरे ड्रॉप-ऑफ की ओर बढ़ता है। बरमूडा ट्रायंगल के क्षेत्र में दुनिया की कुछ सबसे गहरी खाइयाँ पाई जाती हैं। इन गहरी खाइयों में डूबने वाले जहाज या विमान शायद दुबारा कभी मिलेंगे।
बरमूडा ट्राएंगल को डेविल्स ट्राएंगल के रूप में जाना जाता है। ये क्षेत्र, फ्लोरिडा के दक्षिण-पूर्वी सिरे से लगभग 500,000 वर्ग मील महासागर को कवर करता है। यहां तक की पिछले एक दशक से इस बरमूडा ट्राएंगल में 75 एरोप्लेन और 100 से ज्यादा छोटे-बड़े जहाज समा चुके हैं। कुल मिलाकर कहे तो 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
बरमूडा ट्राएंगल की खोज करने वाला जो सबसे पहला इंसान था वो था क्रिस्टोफर कोलंबस। जब क्रिस्टोफर कोलंबस अपनी पहली यात्रा पर इस क्षेत्र के माध्यम से रवाना हुए, तो उन्होंने बताया कि आग की एक बड़ी लौ (शायद एक उल्का) एक रात समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गई और कुछ हफ्तों बाद एक अजीब रोशनी दिखाई दी। उन्होंने अनियमित कम्पास रीडिंग के बारे में भी लिखा, कि जैसे ही वह बरमूडा त्रिकोण के पास पहुंचे, उनके कम्पास ने काम करना बंद कर दिया।
इसी के बाद कई सालो तक कुछ विज्ञानिको ने बरमूडा ट्राएंगल के ऊपर शोध करना शुरू कर दिया । और फिर सालो के अध्यन के बाद विज्ञानिको ने बरमूडा ट्रायंगल के बारे में ये तर्क दिया कि, यहां समुद्र के इस भाग में एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र होने के कारण जहाजों में लगे उपकरण काम करना बंद कर देते हैं। जिस वजह से जो भी जहाज इस रास्ते से जाते हैं वो रास्ता भटक जाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
वहीं आपको जानकर हैरानी होगी की शुरुआत में बरमूडा ट्राएंगल को ज्यादा सीरियस नही लिया गया। लेकिन फिर सन 1945 में हुई एक घटना ने सबका ध्यान बरमूडा ट्राएंगल की और खीच लिया।
दरअसल सन 1945 में अमेरिका के पांच टारपीडो बमवर्षक विमानों के दस्ते ने 14 लोगों के साथ फोर्ट लोडरडेल से इस त्रिकोणीय क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरी थी।
उड़ान भरने के लगभग डेढ़ घंटे बाद रेडियो ऑपरेटरों को सिग्नल के द्वारा पता चलता है कि, उनके विमान का कम्पास काम नहीं कर रहा है। और फिर अचानक से विमान का संपर्क टूट जाता है और उन विमानों में मौजूद लोग उस दिन के बाद आज तक वापस लौट के नही आए।हालांकि उस समय इन विमानों के बचाव कार्य में तीन और विमानों को भेजा गया था। ताकि पता चल सके की विमान में मौजूद 14 लोग कहा गए। लेकिन हालात और ज्यादा बिगाड़ गए जब इन तीन विमानों का भी कोई नामोनिशान नहीं मिला।
वहीं बरमूडा ट्रायंगल पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने अपने शोध से ये दावा किया है की बरमूडा ट्रायंगल अपनी ओर भारी चीज़े खीच लेता है
उसके पीछे की वजह है बादलों की हेक्सागोनल शेप। क्योंकी बादल ‘एयर बम’ बनाते हैं। यानी हवा में बम ब्लास्ट जैसी ताकत पैदा करते हैं। जिस वजह से 170 मील यानी करीब 273 किलोमीटर/घंटा की रफ्तार वाली हवाएं पैदा होती हैं। और जब यही हवाएं और बादल आपस में मिलकर, जहाज या हवाई जहाज से टकराते हैं तोह उन्हें भी एयर बम की वजह से खींचकर समुद्र के तल में ले जाते हैं। और इसी वजह से जो भी जहाज और एयरोप्लेन बरमूडा ट्राएंगल के ऊपर से जाता वो कभी भी जिंदा बच के वापिस नही लौट पता है।
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